रोज कुछ नया लिखता हूं
रोज कुछ नया लिखता हूँ,
रोज कुछ नया गढ़ता हूँ,
बस लिख लेता हूँ,
इसलिए ही आजकल खुश दिखता हूँ।
वो उदासी वो निराशा,
अब गायब सी हो गई है,
लेखन से मन में,
राहत सी हो गई है।
लिखना तो बस अब ,
एक आदत सी हो गई है।
शायद इसीलिए, आजकल,
ये कलम भी साथ देती है,
मेरे मन की तुरंत ही,
कागज़ पे उतार देती है।
और मुझ पर लदा हर बोझ ,
एक पल में ये हर लेती है।
कुछ नया करके
मन ही मन प्रसन्न हूँ।
ये सब कैसे हो रहा है,
सोचकर मै खुद भी दंग हूँ।
ये कागज़ कलम मुझे,
और इन्हें मैं पसंद हूँ।
आजकल लगने लगा है कि,
मैं भी एक हुनरमंद हूँ।