*रोज की बात
रोज की बात
उस रोज की बात,,
इस रोज करते है,,
कोई कुछ भी कहे,,
हम वही कहेंगे जो,,
हर रोज कहते है,,
जमाने के क्या कहने,,
आजकल बदलते है,,
हम जैसे रोज रहते है,,
वक़्त परिंदों की उड़ान है,,
ठहरे चले कब कहाँ कैसे,,
छाव धूप मैं रोज रहते है,,
समझ गये या समझाये,,
बात अपनी या गैर की,,
वही जी हर रोज कहते है,,
तरफदारी भी बहुत हो,,
साथ देने की बात हो,,
याद करो रोज कहते है,,
साज भी आज भी बजते है,,
हम इंतजार मैं रोज रहते है,,
मानक लाल मनु,,,,