रोजाना फिर ईद है हर महिना रमजान
रोजाना फिर ईद है, हर महिना रमजान !
हमने अंदर का अगर,मार दिया शैतान !!
जाते-जाते भी यही, सिखा गया रमजान !
होती है हर धर्म की, …कर्मों से पहचान !!
आंसू जिसने दीन का,..लिया हमेशा चूम !
रहमत से रमजान की,हुआ न वो महरूम !!
भूखे के मुंह में कभी , दिया नहीं इक ग्रास !
फिर तो तेरा व्यर्थ है, किया हुआ उपवास !!
रोजा रखे रसूल तो, ..राम रखे उपवास !
अपना अपना ढ़ंग है,करने का अरदास!
एक करे है आरती, …….दूजा पढ़े अजान !
दोनों प्रभु की वन्दना , प्रभु का ही गुणगान !!
रमेश शर्मा.