रोज़ नई ख़्वाहिश पे दिल अटका रहता है……………..
रोज़ नई ख़्वाहिश पे दिल अटका रहता है
चाहत में फिर दीवाना भटका रहता है
मिला जहाँ में इस क़दर सिला वफ़ा का मुझे
दिल हरदम कहीं कहीं से चटका रहता है
ठहरी हवाएँ ख़ौफ़ सा खाये बैठी हैं
पंखा हरदम छत ही से लटका रहता है
यारो तुम कर लो रबड़ के जैसा वरना
टूट दिलों के जाने का खटका रहता है
अब फ़्रिज़ किसी कूलर की ज़रूरत नहीं मुझे
घर में ठंडे पानी का मटका रहता है
कर देना माफ़ ए यारो गुस्ताख़ी मेरी
आजकल ज़हन मेरा भी सटका रहता है
—सुरेश सांगवान ‘सरु ‘