“”रे मानव तू क्यों जलता है!!””
** रे मानव तू क्यों जलता है**
कहने को तो तू कहता है ,बीच अपनों के ही रहता है।
बढ़ता है कोई अपने पथ में रे मानव तू क्यों जलता है।।
पाई उसने आज सफलता, कल तू भी पा जाएगा।
न हो निराश अपने पथ में ,आज जो मिली विफलता है।।
रे मानव तू क्यों जलता है!!
जलन से क्या होगा ,मन मलीन हो जाएगा।
न मचल, रख धैर्य, वक्त के गर्भ में सब पलता है ।।
रे मानव तू क्यों जलता है!!
माना तेरी चाहत है, आज अभी तू आहत है।
मिल क्या पाएगा जलन में, फिर क्यों मचलता है।।
रे मानव तू क्यों जलता है!!
हो परिस्थिति विपरीत चाहे,उसी में तू जी लेना।
आएगा अनुनय वक्त तेरा ,बेवक्त क्यों तड़पता है।।
रे मानव तू क्यों जलता है!!
राजेश व्यास अनुनय