“रेल”
छुक-छुक करती चलती रेल।
सिग्नल देख निकलती रेल ।
नानी के घर हमें उतार,
फिर रफ़्तार पकड़ती रेल ।
छुट्टी के दिन रहते चार,
नाना नानी करते प्यार ।
रोज सबेरे सैर कराते,
पैदल पथ करवाते पार।
हलुआ पूड़ी और बदाम
नानी देतीं मीठे आम ।
नानाजी देते हर बार,
मोटर गाड़ी और इनाम।
फिरती बार थकाती रेल,
सीटी खूब बजाती रेल।
मन में मीठी याद बसाकर,
पापा के घर लाती रेल।।
रचनाकाल
20 मार्च 2018
-जगदीश शर्मा सहज
अशोकनगर mp