“रेलगाड़ी”
“रेलगाड़ी”
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कई डब्बों की , हो जो गाड़ी,
कहलाती है, वो ही रेलगाड़ी,
आगे लगा , एक इंजन होता,
जहां बैठा, दो सज्जन होता;
पटरी पर सदा दौड़े वो गाड़ी,
बैठते हैं,उसमें बहुतों सवारी;
सभी सवारी, यात्री कहलाते,
आपस में सब,खूब बतियाते;
इसको ट्रेन भी हमसब कहते,
जिसमे सिर्फ, माल भरे रहते;
उसे हमसब मालगाड़ी कहते;
छुक-छुक,छुककर ये चलती;
फिर, हवा से ही बातें करती;
मारे सिटी, और भागे सरपट;
ब्रेक लगे और रुके ये झटपट,
ठहरे ये,प्लेटफार्म पर हरबार,
यात्रीगण जाये, तब घर-बार।
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….. ✍️प्रांजल
……..कटिहार।