**रेलगाड़ी-सी जिंदगी**
***रेलगाडी-सी जिन्दगी***
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छिक पिक छिक पिक रेलगाडी-सी जान पडती है
जिन्दगी,
सीटी बजाकर सबको पुकार रही है रेलगाडी-सी
जिन्दगी।
रोज सांसो की पटरियो पर सरपट दौड़ लगाती है
जिन्दगी,
सब मुसाफिरो को उनकी मंजिल तक पहुंचा रही
जिन्दगी।
कई छूटे कई बैठ गये है पर चल पडी रेलगाडी-सी
जिन्दगी,
कोई छूटा मुसाफिर राह तके मानो लौटकर आयेगी
जिन्दगी,
लौटकर आती है रेलगाडी नही आती रेलगाडी-सी
जिन्दगी।
छूटने वाला इंतजार क्यो करे?लौटकर नही आती
जिन्दगी।
दुःख दर्दो से ठूसं ठूंसकर भरी पडी है रेलगाडी-सी
जिन्दगी,
एक के ऊपर एक चढा है फिर भी सरपट दौड रही
जिन्दगी।
रिजर्वेशन का झंझट नही सबको जनरल टिकट दे
जिन्दगी,
सीट का झंझट नही बैठने की भी होड नही ऐसी है
जिन्दगी।
कर्मो का बोझा बांध चूके है कब आये रेलगाडी-सी
जिन्दगी,
पाप का सागर,पुण्य का गागर भर लिया चाहते है
जिन्दगी।
इंसान सभी सुकर्म करे आवागमन से पिछा छोड दे
जिन्दगी,
भगवान सभी को मौका देता पकड ले रेलगाडी-सी
जिन्दगी।
✍️ प्रदीप कुमार”निश्छल”