रेलगाड़ी यात्रा
उमंग और उत्साह से ,
सफर हुआ शुरू।
फिर जो हुआ उसकी ना थी,
मुझको आरजू।
एक ही सीट पर,
बैठ गए कई यात्री।
सिमटी कोने में मैं,
जैसे बन गई फरयादी।
शुरुआत से ही कुछ भी,
ठीक सा नहीं था,
हर छोटी बात पर,
मन चिड़चिड़ा गया था।
इस आतंक भरे सफर का,
अंत कुछ ऐसा गढ़ा।
जैसे खाया हो करेला मैंने,
ऊपर से नीम चढ़ा।