रूह को खूब सताया
अपनों से दुश्मनी,
परायो से प्यार।
कर लिया था तोबा,
नहीं मालूम मुझे,
कब से हुआ प्यार।
तेरे इश्क में पागल हुआ,
घर द्वार छोड़ कंगाल हुआ।
जब तक थी मेरे पास,
शान, शौकत, और मिल्कियत।
तू दौड़ती रही ,
मेरी बेशाखियो पर।
जीने मरने की कसम खाई थी।
मेरी मोहब्बत की कसम खाई थी।
मेरे नाम के आगे,
लगाया तेरा नाम।
तेरे लिए पलकों पर बिठाया,
फिर भी तूने,
मेरी रूह को खूब सताया।
नारायण अहिरवार
अंशु कवि
सेमरी हरचंद होशंगाबाद
मध्य प्रदेश