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24 Oct 2023 · 1 min read

रूह और जिस्म

तुम्हारे प्रेम की स्मृतियां,
मेरे हृदय में सदैव विद्यमान,
जैसे कोई खिलता कमल,
जैसे – जैसे उपवन में फैली सुगन्ध,
भावनाओं में बहती पावन गंगा सी,
ढाल लेती हूं जिसे शब्दों में,
सजा देती हूं उसमें एहसासों के मोती,
पिरोती हूं धीरे धीरे,
सीप के मोती जैसे किसी माला में पिरोए जाते हैं,
रख लेती हूं अपने सिरहाने वो किताब,
जिसमे कैद हैं मेरे अल्फ़ाज़,
जिन अल्फाजों में सिर्फ और सिर्फ तुम हो,
बस उन्हीं शब्दों को पढ़ते पढ़ते,
खो जाती हूं तुम्हारे ख्यालों में,
महसूस करने लगती हूं,
तुम्हे अपने भीतर ही कहीं,
एक दूसरे में खोए जैसे,
रूह और जिस्म होते है दो होते हुए भी एक..!

Language: Hindi
153 Views

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