रूहें और इबादतगाहें!
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा चर्च यही इबादतगाहें हैं सभी
इबादत से रूहानियत का रास्ता इबादतगाहें हैं सभी!
कोई राम कहे या रहीम कोई कृष्ण कहे या करीम
तुझे अनगिनत नामों से इबादतगाहों में बुलाते सभी!
मगर इबादतगाहों में रूहें सँवरती तो देखी नहीं कभी
यक़ीन नहीं वो वहाँ इबादत करने आती भी हों कभी!
जिस्मानी सुकून से रूहानी सुकून अलग बात है
इबादतगाहें तो रूहानी सुकून ख़ातिर ही हैं सभी!
जिस्म तो बस जिस्मानी सुकूनों के सौदाई ठहरे
इबादतगाह में वो रूहें तो साथ लाये ही न कभी!
ग़र रूहें वहाँ आतीं तो सुकून से महरूम न होतीं
भटकती फिरती हैं वो उन्हें पास बुला लेते कभी!
मुमकिन नहीं लिया-कारों की रूहें ज़िन्दा होंगी
जिन्हें देखा वो रूहें तो न थीं बस जिस्म थे सभी!
या फिर वो वहाँ आयीं मगर तुम्हें पाया ही नहीं
तभी तो राह भटकी रूहें वहाँ नहीं सँवरती कभी!
दिल में आया पूछूँ क्या सच में ही रहते हो वहाँ
या किसी सराब से गुमराह हुए यहाँ लोग सभी!
सुना है तुम्हारा तो हर एक ज़रे में आशियाना है
फिर क्या ज़रूरत है इबादतगाहों में जाएँ सभी!
जब हर जगह मौजूद हो तो क्यों रहम न किया
फिर क्यों हर जगह ही सँवर न सकीं रूहें सभी!
ग़र रूहें सँवर जातीं माहौल कुछ अलग ही होता
न हुड़दंगों में उलझतीं न ही करतीं दिखावे कभी!
यहाँ तेरे नाम पे लूट मची है तमाशा तू देख ज़रा
अनदेखा भले कर आँखों से कुछ छुपता न कभी!
नामुमकिन है इन बातों की तुम्हें खबर ही न लगे
घिनौनी चालों से अनजान हो मैं न मानूँगा कभी!
कोई सूरत बने इबादतगाह में बस रूहें ही आयें
ताकि वो सँवर सकें छोड़के नापाक इरादे सभी!