रूहानी इश्क
क्या इश्क करना है इस ज़ालिम ज़माने से ,
इश्क करना ही है तो करो खुदा ए जाना से ।
इम्तेहान तो खुदा भी लेता है इश्क में मगर ,
पार पा जाए तो लगा लेता है अपने दिल से ।
ज़माने के इम्तेहान तो कभी खत्म नहीं होते ,
ज़िन्दगी की शाम होने पर भी रह जाते अधूरे से ।
ज़माने से इश्क करोगे तो मिलेगी बस बेवफ़ाई ,
खुदा का इश्क तुम्हें बांध लेगा अपने दामन से।
ज़माने का इश्क तुम्हें भटकाएगा जन्म जन्म ,
ना मिल सकेगी निजात रूह को कभी इस से ।
इसीलिए अपनी आरजूओं / ख्वाइशों और ,
हसरतों से कह दो लिपट जाएं उनके कदमों से ।
मुहोबत तो खुदा की है सबसे पाक मुहोबत ,
और जहां की ख़ाक मुहोबत, बाज़ आओ इससे ।
खुदा में मिटाकर खुदी को कर इतना बुलंद ,
तेरी रज़ा जानने को खुदा खुद ही पूछे तुझसे ।
ज़माने से जायदा “अनु ” को यकीन है खुदा पे ,
खुदा ने ही आखिर निकाला इसके ज़लज़ले से ।