रूप जिसका आयतन है, नेत्र जिसका लोक है
रूप जिसका आयतन है, नेत्र जिसका लोक है
ज्योति जिसका हृदय है, जो हरण करता शोक है
नमन बारम्बार उसको क्यों न मेरा मन करे
वह साथ दे तो प्रगति से कोई न सकता रोक है
— महेशचन्द्र त्रिपाठी
रूप जिसका आयतन है, नेत्र जिसका लोक है
ज्योति जिसका हृदय है, जो हरण करता शोक है
नमन बारम्बार उसको क्यों न मेरा मन करे
वह साथ दे तो प्रगति से कोई न सकता रोक है
— महेशचन्द्र त्रिपाठी