रूप घनाक्षरी छंद
रूप घनाक्षरी छंद
सृजन शब्द– “अनुराग ”
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प्रभु भक्ति लीन रहे मन राम राम कहे,
प्रेम नद सदा बहे चरनन अनुराग॥
मोह नींद अब छोड़ो मन भटकन मोड़ो,
कर्म नित नाता जोड़ो फले तभी शुभ भाग॥
पावन पावन मन अर्चन करता जन,
भक्त पहचान बन हॅंस बने नहीं काग॥
मन मैला मत कर द्वेष विष रहा भर,
दण्ड देते हरि हर भ्रम जाल से तू जाग॥
शीला सिंह बिलासपुर हिमाचल प्रदेश🙏