रूतबा
रत्ती भर का भी सुख
वो मुझे दे न सका
भटकता जिसकी तलाश मे तमाम
मै उम्र रहा ।
रूतबा सभ्य समाज मे
दूसरों से ऊंचा समझ
अंहकार की मद मे सदा
मै डूबा रहा ।
अपना पराया हर कोई
दूर मुझसे होता गया
कागज के टुकडों को रोज
मै गिनता रहा ।
चार दीवारी मे बन्द
कीमती साजो सामान के साथ
जिन्दगी का सफर अकेला तय
मै करता रहा ।।
राज विग 23.10.2020