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2 Jun 2024 · 1 min read

“रूढ़िवादिता की सोच”

“रूढ़िवादिता की सोच”
पैर पसारती रूढ़िवादिता का समाज में
आज भी तमाशा दिखे क्यों निराला है
नवयुवक और पढ़े लिखे भी नही अछूते
रूढ़िवादिता से ऊपर एकाध ही विरला है,
मां बाप रहते खुश खूब यह सुनकर कि
दामाद बेटी का बहुत ख्याल रखता है
लेकिन जब बात आती बहू का साथ देने की
तब क्यों बेटा जोरू का गुलाम बन जाता है,
नर घूम घूम हर जगह जुबान चलाए
फलां स्त्री डरती नहीं वह बहुत बोल्ड है
घर में पत्नी जब करे सवाल जवाब तो
बोल मत ज्यादा कहे तब सोच क्यों ओल्ड है,
खेल कर जब लडकियां देश को पदक दिलाती
हर नर तब प्रसन्न होकर फूले नहीं समाता
खुद की बेटी जब जाने लगे ट्यूशन तब टोके
बैठ मेरे स्कूटर पर, क्यों अकेली नहीं भेज पाता,
कैसे होगा सुधार ऐसे हमारी संकीर्ण सोच का
निज बहन बेटी के मामले में जब नर संकुचाता है
मन तो करता है खुल कर रहने का उसका भी
लेकिन देख कलयुग की हालत बेचारा सहम जाता है।

Dr.Meenu Poonia

Language: Hindi
1 Like · 86 Views
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