रूठ जाना
गीतिका
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अच्छा नहीं इस तरह रूठ जाना।
अब किस तरह आपको है मनाना।
कोशिश बहुत की मगर क्या करें हम।
क्या आपको आज कर के दिखाना।
सामान बस चाहिए कुछ जरूरी।
हैं व्यर्थ भारी वज़न यूं उठाना।
कोई कभी साथ देता नहीं है।
है पथ स्वयं के लिए खुद बनाना।
केवल यहां मतलबी लोग सब हैं।
मुश्किल बहुत आज वादे निभाना।
आसान है जब पलायन यहां पर।
लगता कठिन राह पर लौट आना।
हम चाहते हैं सभी से मुहब्बत।
क्यों चाहिए ठोकरों में जमाना।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ०४/०८/२०२४