रूठ जाता हूं
में खुद से खुद ही रुठ जाता हूं ।
जब खुद से ही खुद हार जाता हूं ।।
निराशाएं मुझे घेर लेती है ।
जब में तन्हा रह जाता हूं ।।
सुकून भी अब तो ज़िन्दगी से कतराने सा लगा है ।
वह भी आते आते खुद ही पलट जाता है ।।
…. में अक्सर खुद से खुद ही रुठ जाता हूं ।
एक को मनाता हु दूसरा रुठ जाता है ।
इन रिश्ते नातो में खुद उलझ जाता हूं ।।
वक्त भी अब मुझे समझने लगा है ।
पहले साथ लेकर आगे बढ़ता था,अब खुद ही आगे निकल जाता है ।।
ये केसी कशमकश है जिंदगी की ।
साथ चलने के लिए जिनसे वादे निभाये जाते है । वह ही साथ छोड़ जाते है ।।
में अक्सर खुद से खुद ही रुठ जाता हूं ।
जब में खुद से सम्भल नही पता ।
हार जाता हूं ।