रूठों को मनाने आये हैं
* रूठों को मनाने आये हैं *
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रूठों को मनाने आये हैं,
हक़ अपना जताने आये हैं।
जो दिल में रही बातें बाक़ी,
वो बातें बताने आये हैं।
होती हैं मुलाकातें प्यारी,
मिलने के बहाने आये हैं।
फूलों सा हृदय कोमल तेरा,
भँवरों से बचाने आये हैं।
महफ़िल में महकते दीवानें,
बिजली सी गिराने आये हैं।
नाजुक सी कली मनसीरत,
बगिया को खिलाने आये है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)