रूठे लफ़्ज़
रूठे रूठे लफ़्ज़ लग रहे
कुछ नाराज़ सी बातें है ,
स्याह अँधेरे का काजल भर
निग़ाह में सिमटी रातें है ,
घिर आयी घनघोर घटायें
ज़ज़्बातों में उठा फिर तूफां ,
हर एक बूँद से उठती लपटें
सुलगी सुलगी बरसातें है ,