“रूठी हुई जिन्दगी”
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दिल के अरमानों का कत्ल,
कई बार होते देखा हैं मैंने।
इस रूठी हुई जिन्दगी को–
बार-बार मनाके देखा हैं मैंने।।
सागर के पास रहकर भी,
कितना प्यासा रहा हूं मैं।
गुजरते वक़्त की तन्हाइयों में,
खामोश रोता रहा हूं मैं।।
भटकतें पंछी की तरह हूं मैं,
जिसका नहीं हैं कोई डेरा।
अतीत की रातों में सो गया मैं,
नहीं होना हैं अब! कोई सवेरा।।
वक़्त तो गुजर गया वो,
पर याद आती हैं वो बातें।
अतीत की यादें भूला नहीं हूं ,
याद आती हैं वो मुलाकातें।।
हर पल, हर दिन बीती हैं,
घोर निराशा में ये जिन्दगी मेरी।
एक बुझे दीप की तरह हैं–
ये रूठी हुई जिन्दगी मेरी।।
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रचयिता: प्रभुदयाल रानीवाल
===*उज्जैन*{मध्यप्रदेश}*===
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