चाहत में उसकी राह में यूं ही खड़े रहे।
ग़ज़ल
221/2121/1221/212
चाहत में उसकी राह में यूं ही खड़े रहे।
हर दर्द ले के दिल में, उसे देखते रहे।
नज़रों के पास था मेरी बाहों से दूर था,
बारिश में उसके प्यार की हम भीगते रहे।
चाहा यही था मिल के कभी हम जुदा न हों,
ये था नसीब चांद चकोरी बने रहे।
हमको मिला न यार न यारो खुदा मिला,
हम जिंदगी के जाल में यूं ही फॅंसे रहे।
थीं दूरियां जमीनी मगर दिल करीब थे,
हम दूर हो के पास भी उनसे बने रहे।
‘प्रेमी’ ने जगमगई थी शम्मा जो प्यार की,
उस से हमारे प्यार के दीपक जले रहे।
……….✍️ सत्य कुमार प्रेमी