Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
28 Jul 2021 · 1 min read

” रूठने -मनाने “

डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
============

रूठने -मनाने

का सिलसिला

अब बोलो तो

कहाँ रह गया है?

मित्र तो हम

लाख बना लेते हैं,

पर एहसास मानो

मिट गया है!

हम कभी जब

रूठ जाते थे,

किन्हीं के बातों

को सुनकर!

आँखें सजल जब

हो जाती थीं,

सांत्वना कोई

देता पास आकर!

अब कहने को

तो दोस्त बनके,

विशाल क्षितिजों

पे छा गया है!

मित्र तो हम

लाख बना लेते हैं,

पर एहसास

मानो मिट गया है!

रूठने -मनाने

का सिलसिला,

अब बोलो तो

कहाँ रह गया है?

मित्र तो हम

लाख बना लेते हैं,

पर एहसास

मानो मिट गया है!

इस दौर में

हम सबसे आगे,

कौन कितना है

बनाता मित्रता?

हम ध्यान तो

कभी देते नहीं हैं,

ना ढूंढते इनमें

मीठी आद्रता!

सम्मान, स्नेह

यदि भूल जाएँ,

तो कहो फिर

क्या रह गया है?

मित्र तो हम

लाख बना लेते हैं ,

पर एहसास

मानो मिट गया है!

रूठने -मनाने

का सिलसिला,

अब बोलो तो

कहाँ रह गया है?

मित्र तो हम

लाख बना लेते हैं,

पर एहसास

मानो मिट गया है।

===============

डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हैल्थ क्लीनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 424 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Loading...