रूठकर चल दी बहारें
**रूठ कर चल दी बहारें **
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रूठ कर हैं चल दी बहारें,
छोड़ कर यूँ किस के सहारे।
प्रेम की तो रूत शेष आंगन,
नैन प्यासे राहें निहारें।
जागता रहता बिन तुम्हारे,
याद आती प्यारी फुहारें।
आरजू की आवाज़ सुन लो,
प्रिय सुनो हर दम हैं पुकारें।
हो रहा है बेचैन तन-मन यूँ,
रात-दिन कैसे हम गुजारें।
लौट कर मनसीरत पधारो,
दे रहा है दिल भी गुहारें।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)