रुहानियत और इंसानियत संग संग(पंजाबी में)
इक पिंड च दो कुडियां सी, इक दा नाव रुहानी सी।
इंशानी था ना दूजी दा ,दोनो मन दी रानी सी।
नित प्रति सत्संग में आकर, सेवा खूब कमौंदी सी।
रुहानी इंशानी नू नित , सच का पाठ पढौंदी सी।
बियाह हुआ जब दोनो दा, तां गुर सिख भोले भाले सी।
चारों दे बिच भाव बडा़ सी, गुरु दे मतवाले सी।
दोनो नु दो पुत्तर दिते, सत्गुरु मेहर बडी़ कर दी।
बडे़ हुए जब मुंडे तां, दोनो ने पहरी वर्दी।
चारों संग- संग जिन्दडी़ जित्ते,सत्गुरु शुकर-शुकर करके।
‘ मंगू’ अंतिम सांसा लेकर, पहुंच गये गुरु ते घरते।