रुसल कनिया
रुसल कनिया
कनी लूग में आऊ,
किया गुमान करै छी,
की भेल जे रुसल छी,
बात के विख्यान करै छी।
इस चमकेत गाल पे,
नूर के धारा किया ऐछ,
खिलल लोल पे लाली हटा,
बढ़ल पारा किया ऐछ।
चलू ते मिथिला हाट,
अहां के घुमा दे छी,
यहा चुऊबनिया मुसकान पे,
होम अपन प्राण दे छी।
बिंदेश कुमार झा