“रुला दिया”
रोया करते थे अक्सर,
जिनको खोने के डर से,
आज फिर उनको पाने की
चाहत ने रुला दिया,
माँगते रहे जिन्हें,
ता-उम्र दुआओं में,
आज फिर दुआ में
उनके ज़िक्र ने रुला दिया।
उफ़्फ़, उनका हमें देख के
नज़रें फेर लेना,
हमें नज़र-अंदाज़ करना,
हमसे ही रुख़ मोड़ लेना,
क्या बताएं उस ‘ज़ालिम’ ने,
हमारे साथ और क्या-क्या किया ??
आज फिर दुआ में
उनके ज़िक्र ने रुला दिया।
वो नादान सी हँसी,
वो मदहोश सी आँखे,
वो बेचैन-सा लहज़ा,
वो मरहम-सी बातें,
क्या कहें “सरफ़राज़”,
किस-किस अदा ने हमसे दगा किया??
मुमकिन ये भी तो नहीं था
कि हम बिछड़ जाते,
यूँ अजनबी बन के,
पास से गुज़र जाते!
वो कहते थे,
कि उनके हर ज़र्रे में सिर्फ मैं हूँ!
फिर जाने कैसे
उसने हमें भुला दिया??
आज फिर दुआ में
उनके ज़िक्र ने रुला दिया..!!
-सरफ़राज़