रुबाइ गज़ल गुनगुनाने की रातें —– गज़ल
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रुबाइ गज़ल गुनगुनाने की रातें
उसे हाल दिल का सुनाने की रातें
वो छूना छुआना नज़र को बचा कर
शरारत अदायें दिखाने की रातें
रुहानी मिलन वो जवानी का जज़्बा
मुहब्बत मे हँसने रुलाने की रातें
न चौपाल पीपल बचे गांव मे अब
कहां रोज़ मह्फिल सजाने की रातें
अगर रूठ जाये तो मनुहार करना
उसे याद कसमे दिलाने की रातें
कुछ उलझी लटें गेसुओं का वो सावन
रहीं प्यार मे भीग जाने की रातें
कई फलसफे ज़िन्दगी जो न भूली
कटी छुप के आंसू बहाने की रातें
जो सपने सिरहाने रख कर थे सोये
अब आई हैं उनको उठाने की रातें
खिलाना पिलाना रिझाना गया सब
गयीं बीत यूं ही मनाने की रातें