रुपयों का पेड़
रुपयों लदा पेड़ जो होता ,
सोचो जीवन कैसा होता।
नहीं जेब पे ताला होता ,
हर कोई पैसे वाला होता
न कोई भूखा नंगा होता ,
जीवन कितना चंगा होता,
चमक जाते भाग्य के तारे,
सपने आते न्यारे-न्यारे।
फिर ना कोई बोझा ढोता ,
अपनी किस्मत पर ना रोता।
सबके पास खजाना होता ,
तरह-तरह का खाना होता।
पापा काम पर नहीं जाते ,
करते घर में सदा आराम।
मम्मी को करना ना पड़ता ,
घर का कभी इतना काम।
घर में एक रोबोट होता ,
जो कर देता सब इंतजाम।
बात बात पर हर -पल मुझको ,
मिलते तरह – तरह के इनाम।
माना रुपयों में ताकत है ,
पर ज्यादा होना आफत है।
ये छल-बल और बगावत है ,
ये कई रोग का दावत है।
भवन बड़ा दिल छोटा होता ,
नीयत सबका खोटा होता।
नौकरियों में ना कोटा होता ,
खा-खा के पेट मोटा होता।
जगह-जगह घोटाला होता ,
पल में तब मुँह काला होता।
फिर न कोई फरिश्ता होता,
पैसों का सब रिश्ता होता।
वेधासिंह