रुद्रा
तू तेज वेग की धारा है,
तुझसे मिलकर मैं निर्झर हो जाऊं
तू अनंत गगन की काया है,
तुझसे मिलकर मैं फलक बन जाऊ
तू पत्थर है पारस सा,
छू कर तुझको मैं हीर बन जाऊ
तू नित्य दिवाकर की दिवा है ,
तुझमें ढल के मैं शाम बन जाऊ
तू कमल नयन की गीता है,
तुझे ग्रहण कर मैं अर्जुन बन जाऊ
तू पर्ण अपर्णा सा त्याग है,
तुझमें खोकर मैं रुद्र हो जाऊ।।