रुदन,जाते वर्ष का
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आदमी कोसता रहा सारा वर्ष।
वर्ष ने आदमी को कोसा है।
प्रयोगों को थोप दिया हम पर आदमी ने
मनहूस दिन थे सारे इस वर्ष के ।
इस वर्ष मैं,वर्ष बड़े उत्साह और उल्लास से आया था।
लोगों ने भी मेरे लिए शुभकामनाओं के गीत गाए थे।
उनकी शुभकामनाएँ श्रापित हुई उन्हीं के श्राप से।
मेरा तमाम जिस्म कोढ़ग्रस्त हुआ आदमी के पाप से।
प्रयोगशालाओं को अधम विचारों का केंद्र बनाकर,
बहुत खुश हुआ आदमी अजेय विषाणुओं को पाकर।
चरितार्थ हुआ था बबूल और आम का पुराना फसाना।
रोपा बबूल तो आम निश्चित ही नहीं था पाना।
असमय मृत लोगों के कष्ट से आहत रहा मैं सारा वर्ष।
प्राण बचाने के यत्न की शृंखला ने किया तिरोहित सारा हर्ष।
तनाव भरा जीवन शिशुओं और अबोध बच्चों ने भी जिया।
महत्वाकांक्षी लोगों के असंगत कर्म-फल को रो रोकर पिया।
अंतिम संस्कारों की परम्पराएँ असभ्य कौम की हुई साबित।
जो मरे इस तरह उनका सारा जन्म हो गया यूं शापित।
कंधा देना तो दूर छूने व मुंह देखने से भयभीत रहे लोग।
हे मनुष्य,तुमने ऐसा दिखाया विद्रुप चेहरा,सारा वर्ष मैंने किया है शोक।
जाते हुए कामना है कि छाया भी न छूये मेरा,आता हुआ वर्ष।
तमाम सुंदरताओं,सफलताओं से सज्ज हो इसका देह और उत्कर्ष।
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