रुदंन करता पेड़
मैनें पेड़ को रोते देखा
उसका सब कुछ खोते देखा।
भुजा समान उसकी डाली को
उससे अलग होते देखा।
सिसकी हर पत्ता भरता है
मुंह से आह! भी ना करता है।
जडों से आंसू बहते हैं
दुख की कहानी कहते हैं।
अब! तो छोड़ो हमे सताना
अब! ना मिलेगा मौसम सुहाना।
अपने बच्चों के लिए मैंने,
मानव को, दुख का बीज
बोते देखा।
हां! मैंने पेड़ को रोते देखा
उसका सब कुछ खोते देखा।
©® डॉ. मुल्ला आदम अली
तिरुपति – आंध्र प्रदेश