रुख से परदा हटाना मजा आ गया..
रुख से परदा हटाना मजा आ गया।
बिजलियाँ यूँ गिराना मजा आ गया।
बात जाने न हमने क्या कह दी मगर
देखकर मुस्कुराना मजा आ गया।
तोड़कर बंदिशें इस ज़माने की सब
रोज मिलना मिलाना मजा आ गया।
पल दो पल के लिये रब से मांगा सुकूँ
हाथ तेरा थमाना मजा आ गया।
इश्क में हो गया हूँ मैं पागल तेरे
कह रहा है जमाना मजा आ गया।
नींद कोसों हुई दूर मुझसे मगर
मौत का थपथपाना मजा आ गया।
जिन किताबों में दिल को निचोड़ा कभी
आग उनमें लगाना मजा आ गया।
एक मुद्दत हुई भूख मिटती नहीं
माँ के हाथों से खाना मजा आ गया
आसमां ये “परिंदा” न छू ले कहीं
क़ैद में फड़फड़ाना मजा आ गया।
पंकज शर्मा “परिंदा”