रुखसत (ग़ज़ल)
हम रुखसत लेते हैं तुम्हारे पहलु से , सभी गिले-शिकवे तुम अब भुला देना.
जो भी खता हो गयी हो अनजाने में , मेरे दोस्त ! तुम माफ़ हमें कर देना.
ना दे सके तुम हमें अपनी मुहोबत , तो इसका मलाल भी हर्गिज़ मत करना.
याद आ जाएँ गर भूले से तुमको, तो दो अश्क बस हमारे लिए बहा देना.
वोह दो अश्क भी न हो गर हमारे लिए, चलो कोई बात नहीं, हमें याद तो कर लेना.