रुक-रुक बरस रहे मतवारे / (सावन गीत)
रुक-रुक
बरस रहे मतवारे ।
घरर-घरर
ध्वनि उत्तर आती,
सरर-सरर
सर दक्षिण जाती ।
नैना
तरस रहे कजरारे ।
टप-टप
पूरब बूँद छलकती,
रस-रस
पश्चिम देह सँवरती ।
नभ में
सरस रहे घुँघरारे ।
रह-रह
डाबर,कूप उभरते,
झर-झर
झरने,ताल उछलते ।
खच-खच
कीच मची गलियारे ।
रुक-रुक
बरस रहे मतवारे ।
०००
— ईश्वर दयाल गोस्वामी
छिरारी (रहली),सागर
मध्यप्रदेश ।