रुकिए
एक बार मैं सुबह 7:00 बजे रानीखेत में रोज़ की तरह अपनी कार से बच्चों को स्कूल में छोड़कर घर की ओर लौट रहा था । रानीखेत करीब साढ़े सात हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित एक अंग्रेजों के द्वारा बसाया हुआ एक स्वच्छ एवं मनोरम छावनी ( cantonment area ) क्षेत्र है । रास्ते में जब मैं वहां की चक्कर दार सड़क और चीर देवदार के घने पेड़ों के बीच से होता हुआ लौट रहा था तो रास्ते में मुझे एक फौजी व्यक्ति नागरिक वेशभूषा ( civil dress) में चौकन्ना खड़ा मिला उसने हाथ के पंजे के इशारे से मुझे रुकने का इशारा किया और जोर से अधिकारिक स्वरों में पूरे आत्मविश्वास के साथ बोला
‘ रुकिए’
उसका यह रुकिए कहना इतना आत्मविश्वास से भरा था कि कि मेरे ब्रेक खुद-ब-खुद लग गए और कार के रुकते ही वह कार का पिछला दरवाज़ा खोल कर पीछे वाली सीट पर आकर बैठ गया और बोला
मुझे एम एच ( millitray hospital ) जाना है ।
उसकी यह बात सुनकर मैंने बिना कुछ कहे अगले डायवर्जन के आने पर कार एम एच की ओर जाने वाली सड़क पर डाल दी । करीब 1 किलोमीटर चलने के बाद एम एच आ गया । जैसे ही मैंने कार रोकी उसमें पिछली सीट पर से एक कटोरदान दान के ढक्कन के खुलने की आवाज आई मैंने गर्दन पीछे घुमा कर देखा तो वह पिछली सीट पर बैठा हुआ व्यक्ति अपने हाथ में एक खुला हुआ कटोर दान लिए हुए था जिसमें घर के बने हुए लड्डू भरे थे उसने मुझसे कहा
‘ लीजिए ‘
मैंने पूछा किस बात के लिए ?
उसने कहा
‘ सर आज मेरा लड़का पैदा हुआ है ‘
मैंने उससे लड्डू ले लिया और उसे वहां एमएच में उतार दिया ।
उसके खुशी से भरे जीवंत रूप को देखकर मैं भी खुश महसूस कर रहा था और मैं मन ही मन उसका आभारी था कि उसने अपनी वह खुशी मुझसे साझा कर मुझे भी आनंदित किया था । मैं उस समय उसके हर्ष के सागर में गोते लगाने के लालच में कहना चाहता था कि भाई अगर कोई और काम हो तो बता दो मैं अभी यहां कुछ देर रुका हूं पर संकोच वश ख़ामोशी से गाड़ी आगे बढ़ा दी।
रास्ते में लौटते समय मैं सोच रहा था कि उसदिन जीवन क्रम की गति में उसकी तमन्नाओं के घोड़े सातवें आसमान पर थे । उसके आत्मविश्वास का स्तर इतना अधिक था कि अगर उस समय उसने उस पहाड़ी मोड़ पर खड़े होकर यदि उगते हुए सूरज को भी अपने हाथ के पंजे से रुकने का इशारा किया होता तो शायद सूरज भी कुछ क्षण के लिए अपनी गति थाम लेता या उसदिन वह उगते हुए सूरज को अपनी मुट्ठी में बंद कर सकता था ।