रीत कहांँ
अब जीने की बोलो.. वैसी रीत कहांँ…
सब संबंधों के पीछे है स्वार्थ छुपा
कारण बिना निभाने को है प्रीत कहांँ
हँसे और खेलें,बतियाएं,शर्त लगे
बचपन वाले बच्चों से मनमीत कहांँ
पीड़ा से उपजा कोई संगीत कहांँ
वीणा की तारों पर झंकृत गीत कहाँ
नहीं राम से मिलता अब अकबर कोई
डेविड से मिलता है अब गुरप्रीत कहाँ
जीत की खुशी मनाती है अब हार नहीं
हार को गले लगाए वैसी जीत कहाँ