(( रिहाई ))
तेरे साथ बिता हर लम्हा दिल के,,
तहखाने में हिफ़ाज़त से छुपाई मैंने
तुम सिर्फ और सिर्फ मेरे हो यहीं,,
दिलासा दे कर खुद से की बेवफाई मैंने
ज़िन्दगी से चला गया वो अज़ीज़ शक्स,,
मगर दिल से कभी न की रिहाई मैंने
टूट कर चाहा तुम्हे और हम खुद टूट गए,,
इतनी चाहत के बाद भी पाई जुदाई मैंने
किसी को क्या हक़ के तुझे कुछ कहे,,
तुझ पर आंच न आये ,, खुद की, की बुराई मैंने
अब किस ज़ुबा से तुम्हे अब हम अपना कहे,,
एक तेरी खातिर दुनिया की थी पराई मैंने
क्या मेरी मोहब्बत की यही तकदीर हैं,,
तू किसी और का हो गया, रुसवाई पाई मैंने