रिहाई – ग़ज़ल
” रिहाई ”
नफ़रतों को….. क़ैद से रिहाई दे रहा है ।
शख़्स वही मुहब्बत की दुहाई दे रहा है ।।
किये थे वादे…… साथ रहने के जिसने ।
वही ताउम्र की……….. जुदाई दे रहा है ।।
आँख में……. ख़ुशी के आंसू लिए कोई ।
बाप अपनी बेटी को….. बिदाई दे रहा है ।।
उसकी अस्मत को रखा था मेहफ़ूज़ मैंने ।
तोहफ़े में वो ही मुझे….. रुसवाई दे रहा है ।।
©डॉ वासिफ़ काज़ी , इंदौर
©काज़ी की कलम