रिसेप्शन
कल दीपक भैया की शादी हुई थी ।अगले दिन रिसेप्शन होने वाला था ।दीपक भैया हमारे मंझले भाईजी के पक्के मित्र थे ।जिस कारण उनका हमारे घर आना जाना होता था ।किस प्रकार भोज की तैयारी की जाए, किस प्रकार क्या क्या हो ? इस सिलसिले में दीपक भैया मेरे घर आए थे ।
अचानक उन्होंने हमें देखा और कहा अरे गुड्डी ! ससुराल से कब आई? अभी रहोगी न? आज मेरा रिसेप्शन होगा, तुम भी आना न, क्या आओगी न? हमने भी मुस्कुराते हुए हाँ कहा – – – – ।थोड़ी देर बाद दोनों चले गए ।हमारे घर में भी चर्चा होने लगी, हमसब जाएंगे और सौ डेरसौ देगें ,अच्छा नहीं लगता है कुछ ऐसा दे कि हमसब का जाना उन्हें भारी न लगे ।
इसलिए हम दोनों बहनें बाजार गए तथा एक सुन्दर सा भेनिटिबाॅक्स खरीदी, और दुकानदार से ही कही अच्छी दाम वाले श्रृंगार के समान से भर दिजिय।, आज से लगभग 17-18 वर्ष पूर्व 15-16 सौ रूपये पड़े थे ।घर पर लाई माँ को दिखाई।माँ थोड़ी बोली – -फिर ठीक है , सब मिल कर खाएंगे और – – -दीपक, उसके घर वाले कुछ कहेंगे नहीं पर क्या सोचेंगे ।
इसी समय मेरी फूफेरी बहन का दुरागमन (गौना )भी होने वाला था जिस कारण हमलोगों का वहाँ आना-जाना लगा रहता था ।उस दिन भी हम गए थे ।जब शाम हुई तो हमने कहा हमें दीपक भैया के यहाँ जाना है – – – -।सो अब हमें जाने दो बवन भैया बोले खाना खा के जाना ।हमनें हंसते हुए कहा ऐं! वहाँ रसगुल्ला नहीं खाएंगे जो यहाँ रोटी सब्जी खाएंगे ? भाई जी बता रहे थे कि रसगुल्ला की भरमार व्यवस्था है ।बवन भैया भी अच्छा! अच्छा! कहा ।हम दोनो के साथ सभी हँस पड़े ।
लगभग 8-8:30 बजे हम, पप्पा मेरा छोटा भाई टुन्नी और छोटी बहन मुन्नी सब चल पड़े ।घर के पास ही उनका घर था।रास्ते में टुन्नी – हेनरी! ( चिढा रहा था) कम खाना तुम्हारा ससुराल नहीं है – – गुस्सा भी आ रहा था ।पप्पा देखिए टिकवा को हमको किस तरह कह रहा? ? हम नहीं भी जाएंगे – – – । वहाँ पहुँचे तो पप्पा और टुन्नी पुरुष की ओर चले गए और हम दोनो बहनों को दुल्हा दुल्हन के पास रह गए ।हम सब दुल्हन देखे, लड़की सुन्दर थी अच्छी लग रही थी दीपक भैया से लाख गुणी अच्छी ।दीपक भैया हमारे इधर देखकर बोले चाची नहीं आई? हमने सिर हिला कर बोली नहीं ।उनकी माँ बोलीं आना चाहिए था न बहू देख लेतीं ।
जब तक मेरे हाथ में भेनिटिबाॅक्स रहा तबतक सब बातचीत किए और जैसे ही हाथ से गया, लोग बात करना भी बंद कर दिए और न ही कोई बैठने के लिए कहा ।हम दोनो बहनें दीवार के सहारे खड़े रह गए, कोई फिर पुछा तक नहीं ।दीपक भैया मेरे इधर देख रहे थे पर न बैठने के लिए कहा और न ही खाने के लिए ।
भगवान की कृपा थी कि हम दो थे, बातें कर रहे थे, एक होते तो क्या होता ।खड़े खड़े पैर में दर्द होने लगा ।समय भी भागता जा रहा था 9से10,10से11 बज गया किसी भी ने नहीं टोका ।हमने कहा (थोड़ी तेज आवाज में) चल! खाना खाने के लिए इतनी देर रुकेंगे ।चल! हम दोनों चल दिए ।फिर भी किसी ने नहीं रोका न टोका ।
हम दोनों घर पहुचे तो माँ ने पूछा लड़की कैसी है? क्या क्या खायी? हमने गुस्से में कहा करिया की मुंडी ।माँ -क्यों क्या हुआ? माँ जब तक डिब्बा हाथ में रहा सबने टोका फिर मानो हम भूत प्रेत हों किसी ने नहीं टोका – – ।माँ जल्दी खाना दो बहुत जोर से भुख लगी है ।माँ बोली जा! हम खाना तो कुछ बनाए ही नहीं हैं, सोचा दीपक इतना घुला मिला है सब को खाने के लिए कहा तो मेरे लिए भी कुछ भेज देगा – -हट! करिया तावा के पेंदी का नाम मत लो।कह रहे थे ताती त्यों नहीं आई, चाची भले नहीं गई – – – – ।
हमारा दुर्भाग्य देखिए घर में दूध भी नहीं था, क्योंकि गाय का दूध कुछ कुछ नमकीन हो गया था, कोई दूध खाना नहीं चाहते थे इस कारण थोड़ी देर पहले माँ दही बनाने के लिए जोड़न डाल चुकी थी, पप्पा भाईजी दिन भर घर में रहे नहीं जिस कारण सब्जी भी नहीं था ।हमलोग खाएं तो क्या खाएं? मुन्नी डिब्बा डिब्बी ढूढने लगी उसे, उसके मुट्ठी भर चूड़ा भूंजा मिला ।वो जोर से चिल्लायी मिल गया मिल गया ।मानो भूंजा सेर पसेरी हो ।हमलोगों को हंसी भी आई और गुस्सा भी । माँ बोली इतनी रात को क्या बनाएंगे मोटी रोटी पकाते हैं, नमक तेल अचार के साथ खा लेगे ।माँ चली गई – – – ।
उनका घर हमारे आंगन से दिखता था ।हमदोनों बहन मुह टेढ़ा मेढा कर गुस्सा रहे थे गुड्डी कब आई? भोज खाने आना मुंडी खा कर जाना ।जानती हो माँ तुम जाती तो लड़की की मुंह दिखाई कुछ देती ही, इसलिए तुमको ढूंढ रहे थे, अच्छा हुआ नहीं गई अच्छा हुआ! हमको पता रहता तो कारूमल के यहां जाते ही नहीं, अच्छा था बवन भैया खाना खाने के लिए कह रहे थे, हम वहीं खा लेते – – ।मुन्नी बोली तुम्ही न फटाक से दे दी खाना खाने के बाद देती- – — ।
उस दिन से हमने ठान लिया किसी के रिसेप्शन में जाना नहीं है, यदि जाना पड़ ही गया तो पहले खाना फिर खाए हुए खाना का कीमत चुकाना ।
उमा झा