रिसते रिश्ते
रिसते रिश्ते
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सत्य रिश्ता नहीं,
अथवा रिसता नहीं
कौन? सा रिश्ता नहीं रिसा है.
चीख,चिल्लाकर या मौन पिसा है.
चीख,चिल्लाकर जिये रिश्ते
अधिकार का समर है.
मौन रहकर जिया हुआ रिश्ता
गंवाया हुआ अवसर है.
अथवा
हासिल हक का असर है.
स्वार्थ से ऊपर कोई रिश्ता नहीं.
अथवा क्रय-विक्रय के जाल में यह
पिसता नहीं.
रिश्ते की सृष्टि
और सृष्टि का रिश्ता
परिभाषित है किन्तु,
प्रमाणित नहीं.
कृष्ण का महाभारत
ईश्वर के प्रासंगिक होने का है.
रिश्तों को रिसता हुआ दिखाने का है.
अहंकार का रिश्ता है.
और यहाँ घृणा रिसता है.
बुद्ध के अहिंसा का प्रण
मानव-कल्याण का रिश्ता है.
कालांतर में स्वार्थ से भिड़कर
शनै:-शनै: रहा रिसता है.
मनुष्य के जीवन में अहं जब
लेता है आकार.
रिसता है सहोदर होने का भी भाव.
अपने लिए जीने की कामना करते ही
पड़ती है रिश्ते में दरारें.
स्वार्थ के अस्वच्छ होते ही
विशृंखलित होती है सारी करारें.
आपाधापी मचे तो रिसते हैं रिश्ते.
वर्चस्व की लड़ाई में रिसते हैं रिश्ते.
महात्वाकांक्षा की ऊंचाई में रिसते हैं रिश्ते.
उत्तराधिकार की ढिढाई में रिसते हैं रिश्ते.
अच्छाईयों की परिभाषाएँ और पहचान होती हैं.
रिश्ते के भी और ‘रिसते हुओं’ के भी.
भाई बहन के रिश्ते अनावश्यक अभिभावात्मक हो तो
रिसते हैं.
देवताओं के और दानवों के रिश्ते
अच्छाईयों को जीने के लिए रहे रिसते.
उनकी अपनी-अपनी मान्यताएं थी अच्छाईयों के.
एक को शासन करने का गुमान.
दूसरे का शासित नहीं होने का आह्वान.
स्त्रियों और पुरूषों के सम्बंधों का आधार
निभाये गये रिश्ते हैं.
पति हों पत्नी हों,भाई हों बहन हों
न निभाये जायें तो रिसते हैं.
रिश्तों का विद्रोह रिसते हैं.
विद्रोह के रिश्ते रिसते हैं.
अधिकार की लड़ाई त्यागे हुए लोग
जिंदगी भर रिसते हैं.
बौनेपन की अपनी ही चक्की में पिसते हैं.
अधिकार के लिए उठो.
स्वयं को स्वीकार करने उठो.