*रिश्वत लेना एक कला है (हास्य व्यंग्य)*
रिश्वत लेना एक कला है (हास्य व्यंग्य)
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यह तो मानना पड़ेगा कि रिश्वत लेने के मामले में अभी भी लोगों में जागरूकता का अभाव है। रिश्वत लेना एक कला है। इस कला में जो व्यक्ति जितना पारंगत होगा, वह उतने ही निरापद रूप से रिश्वत ले पाएगा।
रिश्वत ऐसे ली जानी चाहिए कि दाहिना हाथ रिश्वत ले और बाएं हाथ को भनक भी न पड़े। जिस प्रकार से एक योगी अपनी सॉंसों को अत्यंत सुगमता से बिना कोई आवाज किए लेता है, ठीक उसी प्रकार से रिश्वत लेने वाले को एक आदर्श योगी की तरह होना चाहिए। कुछ लोग इतने बेवकूफ होते हैं कि जब रिश्वत लेते हैं तो अति उत्साह में भर जाते हैं । जब रिश्वत लेकर घर लौटते हैं तो उनकी पैंट की दोनों जेबें फूल कर कुप्पा हुई साफ दिखती हैं । पूरे रास्ते लोग समझ जाते हैं कि आज साहब ने मोटी मुर्गी फॉंसी है। भई ! रिश्वत लेकर आए हो तो संयमित रूप से रोजमर्रा की तरह टहलते हुए चलो। हाथ में बैग लेकर रोजाना दफ्तर जाने और आने की आदत डालो। यह नहीं कि जिस दिन रिश्वत लेनी है, उस दिन बैग ले गए। बाकी दिन खाली हाथ दफ्तर आते-जाते रहे।
बैग खाली हो या भरा हुआ हो, लेकिन हाथ में मजबूती से पकड़े हुए सधे कदमों से हमेशा सड़क पर चलते हुए दिखो। कोई पूछे भी कि इस बैग में क्या है ?, तो निडर होकर कह दो कि हमारा जीवन खुली किताब है। लेकिन इस बात का ध्यान रहे कि कभी भी अपना बैग खोलकर किसी को मत दिखाना। बैग भले ही खाली हो, लेकिन वह तुम्हारी रिश्वत लेने की नाव है जो नदी के पार जाती है और फिर लौट कर आ जाती है।
चतुर लोग कभी भी अपने हाथ से रिश्वत नहीं लेते। वह हमेशा बीच का एक दलाल सुनिश्चित कर लेते हैं। रिश्वत देने वाला दलाल को रिश्वत देता है। दलाल अपना कमीशन काटकर बाकी रुपया रिश्वत लेने वाले को पकड़ा देता है। इसमें कभी भी फॅंसने की गुंजाइश नहीं है। लेकिन इस प्रक्रिया में दिक्कत यह है कि कई बार दलाल जितनी धनराशि रिश्वत में लेता है, मलिक को उससे कम बताता है। इस तरह दलाल की आमदनी ज्यादा होती है, मालिक की आमदनी कम रह जाती है।
कई रिश्वत लेने वाले इसीलिए दलाल के चक्कर में नहीं पड़ते। ऐसे लोगों ने या तो पूरी रिश्वत खुद ही निगल ली या फिर पुलिस ने पकड़ कर उन्हें जेल भेज दिया।
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
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