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10 Apr 2022 · 1 min read

*रिश्वत जिंदाबाद 【हास्य-व्यंग्य गीतिका】*

रिश्वत जिंदाबाद 【हास्य-व्यंग्य गीतिका】
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
(1)
रिश्वत देकर काम निकालो ,रिश्वत जिंदाबाद
शरमाओ मत रिश्वत खा लो ,रिश्वत जिंदाबाद
(2)
तुच्छ-राशि पर मुँह बिचका लो ,रिश्वत जिंदाबाद
लार बड़ी देखो टपका लो ,रिश्वत जिंदाबाद
(3)
वेतन तो सूखी रोटी है ,मजा कहाँ आएगा
आओ थोड़ा घी चुपड़ा लो ,रिश्वत जिंदाबाद
(4)
यह धंधा ऐसा है जिसमें कब विश्वास किसी का
बंधु कभी कल पर मत टालो ,रिश्वत जिंदाबाद
(5)
यह जो सीधा-सादा-सा ईमानदार दिखता है
उस दिखने से भ्रम मत पालो ,रिश्वत जिंदाबाद
(6)
छिपकर रिश्वत कौन ले रहा अब मेजों के नीचे
रेट-लिस्ट अब तो डलवा लो ,रिश्वत जिंदाबाद
(7)
सौ रिश्वतखोरों में दो जो हैं सच्चाई वाले
उन्हें पड़े खर्चे के लाले ,रिश्वत जिंदाबाद
(8)
कहाँ रखें रिश्वत के मोटे पैसे रोज कमाते
उनके घर में सौ-सौ ताले, रिश्वत जिंदाबाद
(9)
नेताजी को देखो ! कितना सुंदर भाषण देते
उजले कपड़े दिल के काले ,रिश्वत जिंदाबाद
(10)
चपरासी से क्लर्क बड़ा है अफसर सबसे खउआ
रिश्वत के मकड़ी-से जाले ,रिश्वत जिंदाबाद
————————————
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997 615451

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