*रिश्वत की दौलत जब आती, अच्छी लगती है (हिंदी गजल/ गीतिका)*
रिश्वत की दौलत जब आती, अच्छी लगती है (हिंदी गजल/ गीतिका)
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1
रिश्वत की दौलत जब आती, अच्छी लगती है
जिह्वा बनी चटोरी खाती, अच्छी लगती है
2
चमचे जय-जयकार कर रहे, नेता की कब से
उनकी गुंडागर्दी छाती, अच्छी लगती है
3
चाहे बंटाधार देश का हो जाए लेकिन
आबादी अपनी बढ़ जाती, अच्छी लगती है
4
साहब जीतेंगे चुनाव में, यद्यपि नालायक
चमचों की यह ठकुरसुहाती, अच्छी लगती है
5
भरी हुई हैं घर में काले नोटों की गड्डी
पत्नी सबको बात बताती, अच्छी लगती है
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 999761 5451