*रिश्तों मे गहरी उलझन है*
रिश्तों मे गहरी उलझन है
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भावों में बहती खुटपन है,
रिश्तों में गहरी उलझन है।
दुनिया तो है आनी – जानी,
धड़के साँसों में धड़कन है।
काँटों के पहरे में रह कर,
फूलों से खिलता उपवन है।
देखा – देखी में देखा हमने,
चलती देखी भारी पलटन है।
यौवन हर पल मन भटकाए,
मन पर भारी तो भटकन है।
मनसीरत जीवन का है फल,
जो भी देखो वो निर्धन है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)