*रिश्तों में दरार*
मन आई खिन्नता
बढ़ती गई भिन्नता
लुप्त हुई प्रसन्नता
रिश्तों में पड़ी दरार||1||
अपने-पराये अनजाने
आने लगे ताने-बाने
देने वाले जाने-माने
रिश्तों में पड़ी दरार||2||
अंतर मतभेद हो
बुद्धि न सचेत हो
अंधानु विभेद हो
रिश्तों में पड़ी दरार||3||
वाहवाही जय जयकार
दुनिया का चमत्कार
थोड़ा आया अहंकार
रिश्तों में पड़ी दरार||4||
बन जाये गुदड़ी लाल
अगर कोई फटेहाल
करले जीवन निहाल
रिश्तों में पड़ी दरार||5||
‘मयंक’ पड़े सब उनके पीछे
ऊपर आए थे जो नीचे
टाँग उनकी सब खींचें
रिश्तों में पड़ी दरार||6||
✍ के.आर.परमाल ‘मयंक’