रिश्तों में गहरी छांव है
रिश्तों में गहरी छांव हैं
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हमें देते वही ही घाव हैं,
जिनसे हमको लगाव है|
खुल से जुदा कैसे करें,
मन में बहुत से चाव है|
दिल में भरी हों नफरतें,
रिश्ते में हो बिखराव हैं|
मन से मन जब न मिले,
उत्पन्न होते अलगाव है|
दरिया में नदियां मिलें,
तीव्र हो जाते बहाव है|
किनारे बहुत ही दूर हैं,
मंझदार फंसी नाव है|
चलते-चलते रुक जाएं,
अच्छा नहीं ठहराव है|
चेहरा तुम्हारा है आईना,
छिपते न हाव – भाव है|
करके दिखाएं काम को,
काम न आते सुझाव है|
जैसी जिसकी भावना,
विचारों से ही उठाव है|
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अकड़ में पकड़ टूटती,
प्रेम से होता झुकाव है|
पथ पर पग रख संभल,
पंक में धंसते पांव है|
मनसीरत हमेशा ढूंढ़ता,
रिश्तों में गहरी छांव है|
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)