रिश्तों में कैंची
रहिमन धागा प्रेम का,
मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर न जुड़े,
जुड़े गांठ पड़ जाय।।
वह समय बीत गया जब अपने तो क्या पराए व अनाथ भी घरों में पालित- पोषित हो कर युवा हो जाते थे और घर की सगी संतानों को भी पता नहीं चल पाता था कि कोई गैर हमारे साथ पल कर बड़ा हो गया। इसका कारण था समाज में हमारे उत्कृष्ट संस्कृति का अच्छा प्रभाव व संयुक्त परिवार के परिवेश में जीवन यापन।
धैर्य की कमी से रिश्तों पर कैंची चल जाया करती है।
कैंची की धार का सर्वश्रेष्ठ व ज्वलंत उदाहरण है संयुक्त परिवार से कटकर एकल परिवारों का निर्माण किया जाना।
आज छोटे व एकल परिवार होते हुए भी सीमित सदस्यों में भी सम्बन्धों का टूटना, अनबोला होना, अलगाव होना अत्यन्त मामूली बात है। अधैर्य, असहिष्णुता व स्वार्थपरता ने हमारे स्वभाव में जड़ें जमा ली हैं। कमोबेश हर व्यक्ति असहिष्णु है। धैर्य की कमी होने के कारण हम क्षण भर में विचलित हो जाते हैं।
कुछ व्यक्ति स्वभावतः चुगलखोर प्रवृत्ति के होते हैं। हम उनके स्वभाव से परिचित होते हैं किन्तु हम इस बात को नजरअंदाज कर उसकी मन गढ़ंत बातों में आकर किसी भी अपने सगे संबंधी के ऊपर अविश्वास कर उससे कन्नी काटने लगते हैं या पूर्णतः अनबोला कर लेते हैं। ऐसे में उन खुराफाती शख्सों को तो अपने शरारती कारनामे सफलता मिल जाती है किन्तु आपके प्यारे रिश्तों पर तो चल गई न कैंची।
इन शरारती तत्वों को हम असामाजिक तत्व अथवा विघटनकारी तत्व भी नाम दे सकते हैं।
रिश्तों में कैंची की धार का क्या काम जहाँ प्यार और विश्वास की सुदृढ़ डोर चाहिए जिसे रिश्ता निभाने वाले दोनों पक्ष इतनी मजबूती से पकड़कर रखें कि तेज से तेज धारदार कैंची की धार भी इन्हें काटने में विफल हो जाए।
कही सुनी बातों पर ध्यान नहीं दें और किसी भी गलतफहमी को आमने -सामने के वार्तालाप के माध्यम से सुलझाने भरसक प्रयास करें। अनेक बार प्रत्यक्ष बातचीत से बड़े-बड़े मन मुटाव दूर हो कर रिश्ते पूर्ववत्
सामान्य होते देखे हैं। साथ ही आपसी संवाद के अभाव में बहुत ही प्यारे रिश्तों पर कैंची चलती देखी गई है।
“रिश्तों को सींचें प्यार से
न काटें कैंची की धार से
रिश्ते निभते मीठी मनुहार से
भरोसे व विश्वास भरे व्यवहार से।”
अतः भरपूर जिएं। रिश्तों की प्यारी पौध को स्नेह प्रेम विश्वास के मीठे जल से सिंचित करें पुष्पित करें फिर देखें एक दिन आपके रिश्तों की खूबसूरत फसल लिए लहलहा उठेगी। रिश्तों की फुलवारी को हमेशा खिली रहने दें। रिश्ते मनुष्य जीवन की संजीवनी हैं।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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