*रिश्तों को मरते देखा*
रिश्तों को मरते देखा
आयी आँधी एक बार बस,
चमन को उजड़ते देखा।
मैने रिश्तों को मरते देखा।।
मर गया प्रेम जगत में ,
सब व्यर्थं बातें बोल रहें।
अमृत की प्रवाह धारा में,
नफ़रत का विष घोल रहे।
देवों को आज मैने,
दानवों से डरते देखा।
मैने रिश्तों को मरते देखा।।
पोछें जिसने आँसू मेरे,
आज आँखे उसकी बरस रही।
क्यों पुत्र मिलन की चाह में,
करुणामयी तरस रही।
वियोग की आहूति में ,
ममता को जलते देखा।
मैने रिश्तों को मरते देखा।।
एक दूसरे के दर्द को ,
अब कहाँ कोई समझता हैं।
बिगड़ जाए बात अग़र,
मानव मानव पर हँसता है।
बिना मौसम मैने,
बादलों को बरसते देखा।
मैने रिश्तों को मरते देखा।।
@शिल्पी सिंह
बलिया(उ.प्र.)